Wednesday, 4 April 2018

भारत की मिट्टियाँ (अध्याय -33 भारत का भूगोल )






भारत कृषि अनुसंधान परिषद ( मुख्यालय – नई दिल्ली) ने भारत में आठ तरह की मिट्टियों की पहचान की है।

1- पर्वतीय मिट्टी
2- जलोढ़ मिट्टी
3- काली मिट्टी
4- लाल मिट्टी
5- लैटेराइट मिट्टी
6- मरुस्थलीय मिट्टी
7- पीट एवं दलदली मिट्टी
8- लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी

– भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान – भोपाल में

(Indian institute of soil science)
भारत में सर्वाधिक क्षे० पर पाई जाने वाली मिट्टी क्रमानुसार
1- जलोढ़ मिट्टी – 43 %
2- लाल मिट्टी – 18 %
3- काली मिट्टी – 15 %
4- लैटेराइट मिट्टी – 3.7%

भारत के सभी मिट्टियों में तीन तत्वों की कमी पाई जाती है।

1- ह्यूमस
2- नाइट्रोजन
3- फास्फोरस

जलोढ़ मिट्टी

– जलोढ़ मिट्टी को कॉप या  कद्दारी मिट्टी भी कहते हैं।
– यह भारत के सर्वाधिक क्षेत्रफल 43% पर विस्तृत है।
– यह भारत में मुख्य रूप से दो क्षेत्रों में पाई जाती है।
1- उत्तर भारत के मैदान में
2- तटीय क्षेत्रों में
– उत्तर भारत के मैदान में जलोढ़ मिट्टी सतलज के मैदान से लेकर पूर्व में ब्रम्हपुत्र के मैदान तक मिलता है।
– तटीय मैदान के अंतर्गत जलोढ़ मिट्टी महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी नदियों के डेल्टा क्षेत्र में और पश्चिमी तटीय मैदान के अंतर्गत केरला और गुजरात में पाई जाती है।
– जलोढ़ मिट्टी नदियों के द्वारा पहाड़ों को काटकर लाई गई है तथा मैदानों में बिछा दी गई है।

– जलोढ़ मिट्टी दो प्रकार के होते हैं।

1- खादर
2- बांगर
– नदी के आसपास बाढ़ क्षेत्र की जलोढ़ मिट्टी खादर मिट्टी कहलाती है। खादर मिट्टी हर साल नई हो जाती है बाढ़ के माध्यम से
– नदी से दूर ऊंचे क्षेत्रों के पुराने जलोढ़ को बांगर मिट्टी कहते हैं।
बांगर मिट्टी हर साल नहीं नहीं होती है अतः खादर मिट्टी अपेक्षाकृत अधिक उपजाऊ होता है।

– भारत के सभी मिट्टियों में सर्वाधिक उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी है तथा जलोढ़ मिट्टी में खादर मिट्टी सर्वाधिक उपजाऊ है।

– बांगर क्षेत्र की मिट्टी में खुदाई करने पर कैल्शियम कार्बोनेट या चूना की ग्रंथियां मिलती हैं।
यह ग्रंथियां हिमालय क्षेत्र को काटकर नदियों द्वारा लाई गई हैं तथा इन्हें नई मिट्टियों के द्वारा ढक दिया गया है।
इन्हें स्थानीय भाषा में ककड कहा जाता है।
– जलोढ़ मिट्टी में भी ह्यूमस, नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी पाई जाती है।
– जलोढ़ मिट्टी में पोटेशियम और चूना प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

लाल मिट्टी

– भारत में दूसरा सर्वाधिक क्षेत्र 18% में पाया जाने वाला मिट्टी लाल मिट्टी है।
– लाल मिट्टी लोहे के ऑक्साइड के कारण लाल दिखाई देता है।
लोहा का ऑक्सीकरण हो जाता है अर्थात लोहा जब खुला में रहता है तो वह ऑक्सीजन और नमी के संपर्क में आ जाता है जिसके कारण लोहा में जंग लग जाता है। यह जंग लोहा का ऑक्साइड कहलाता है।
– दक्षिण भारत में या पठारी भारत के सर्वाधिक क्षेत्रफल पर लाल मिट्टी पाया जाता है।
– पठारी भारत का आधा पूर्वी भाग लाल मिट्टी का क्षेत्र है तथा आधा पश्चिमी भाग काली मिट्टी का क्षेत्र है।
– लाल मिट्टी पठारी भारत के पूर्वी भाग तथा पूरे दक्षिण भारत में पाया जाता है। इसका विस्तार मुख्य रूप से तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ उड़ीसा, पूर्वी मध्य प्रदेश तथा झारखंड में है लेकिन लाल मिट्टी का सर्वाधिक क्षेत्रफल तमिलनाडु में है।
– लाल मिट्टी पठारी भारत के कम वर्षा वाले क्षेत्रों की मिट्टी हैं। यह उपजाऊ मिट्टी नही है, यही कारण है कि खाद्यान्नों की खेती यहाँ कम होती हैं।

काली मिट्टी

– काली मिट्टी का विस्तार महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश तथा उत्तरी कर्नाटक के क्षेत्र तक है। दक्षिण पूर्वी राजस्थान
– काली मिट्टी में कपास की खेती अधिक होती है इसलिए इसे कपासी मिट्टी कहते हैं।
– कपासी, रेगुर लावा मिट्टी, करेल मिट्टी उत्तर प्रदेश में करेल मिट्टी को काली मिट्टी कहा जाता है।
– अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काली मिट्टी को चेरनोजम कहा गया है। चेरनोजम मिट्टी मुख्य रूप से काला सागर के उत्तर में यूक्रेन में तथा ग्रेट लेक्स के पश्चिम में संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में पाई जाती है।
– काली मिट्टी को लावा मिट्टी भी कहते हैं क्योंकि यह दक्कन ट्रैप के लावा चट्टानों की अपक्षय अर्थात टूटने फूटने से निर्मित हुई मिट्टी है।
– दक्कन पठार के अलावा काली मिट्टी मालवा पठार की भी विशेषता है अर्थात मालवा पठार पर भी काली मिट्टी पाई जाती है।
– काली मिट्टी का सर्वाधिक विस्तार महाराष्ट्र राज्य में है।
– काली मिट्टी की प्रमुख विशेषता यह है कि उसमें जल धारण करने की सर्वाधिक क्षमता होती है काली मिट्टी बहुत जल्दी चिपचिपी हो जाती है तथा सूखने पर इस में दरारें पड़ जाती हैं इसी गुण के कारण काली मिट्टी को स्वत जुताई वाली मिट्टी कहा जाता है।
– कपास की खेती सर्वाधिक गुजरात राज्य में होती है अर्थात कपास का उत्पादन सर्वाधिक गुजरात राज्य में होता है।

शुष्क कृषि

– जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है {जैसे – राजस्थान वृष्टि छाया प्रदेश का क्षेत्र} वहां खेती की एक विशेष पद्धति अपनाई जाती है जो जल बचत पर आधारित होती है।
ऐसे कृषि में पानी सीधे पौधों को ही मिलती है।
– किसान बरसात से पहले खेतों की जुताई इसलिए करते हैं ताकि मिट्टी बरसात के समय अधिक से अधिक नमी अर्थात जल धारण कर सके।

लैटेराइट मिट्टी

– लैटेराइट मिट्टी का निर्माण दो परिस्थितियों में होता है।
1-  200 सेंटीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा
2-  अधिक गर्मी

उपरोक्त दोनों परिस्थिति भारत के तीन क्षेत्रों में पाई जाती है।

1- पश्चिमी घाट पर
2- उड़ीसा तट पर
3- शिलांग पठार पर
भारत में लैटेराइट मिट्टी का सर्वाधिक क्षेत्रफल केरला में है।
तथा इसके बाद महाराष्ट्र में पाया जाता है।
क्योंकि इन दोनों राज्यों में पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल के सहारे 200 सेंटीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा दर्ज की जाती है और साथ ही विषुवत रेखा से नजदीक होने के कारण इन क्षेत्रों में गर्मी अधिक पड़ती है।

– भारत में लैटेराइट मिट्टी का विस्तार

1- पश्चिमी घाट
2- तमिलनाडु की शिवाराय पहाड़ी
3- उड़ीसा का तट
4- झारखंड के राजमहल पहाड़ी
5- मेघालय एवं असम की पहाड़ियां अर्थात मेघालय के शिलांग पठार एवं असम के मिकीर रेंगमा पहाड़ी पर

– लैटेराइट मिट्टी भारत में चौथा सर्वाधिक क्षेत्रफल पर विस्तृत मिट्टी है।

– ईट बनाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मिट्टी लैटेराइट मिट्टी है।
– लैटेराइट मिट्टी में ह्यूमस, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (k) की कमी पाई जाती है।
– लैटेराइट मिट्टी में लोहे और एल्यूमीनियम के ऑक्साइड की प्रचुरता होती है और लोहे के ऑक्साइड के कारण ही लैटेराइट मिट्टी का रंग लाल होता है।
– इन क्षेत्रों में अधिक वर्षा के कारण तथा क्रम से भीगने एवं सूखने के कारण इन क्षेत्रों की मिट्टियों में सिलिका पदार्थ का निक्षालन हो गया है अर्थात सिलिका पदार्थ रिस कर नीचे की ओर चला गया है।
अर्थात लैटेराइट मिट्टी का निर्माण सिलिका के निक्षालन से हुआ है।

– लैटेराइट मिट्टी एक निक्षालित मिट्टी है।

–  लैटेराइट मिट्टी की उपजाऊ मिट्टी है इसलिए या खानदान की लैटेराइट मिट्टी की उपजाऊ मिट्टी है इसलिए या खाद्यान्न की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।
यहां पर चाय, कॉफी, मसाला, काजू, चीनकोना की खेती होती है।
यह मिट्टी अम्लीय होती है।

मरुस्थलीय मिट्टी

– मरुस्थलीय मिट्टी का निर्माण पश्चिमी भारत के शुष्क क्षेत्रों में हुआ है राजस्थान तथा राजस्थान के आसपास के राज्यों में।
– इसका विस्तार भारत में दक्षिणी पंजाब, दक्षिणी हरियाणा, समग्र राजस्थान तथा गुजरात के कच्छ क्षेत्र में है।
– इसका मिट्टी में खाद्यान्नों की खेती संभव नहीं है इसलिए यहां पर ज्वार, बाजरा, सरसों एवं मोटे अनाज की खेती की जाती है।
– ज्वार, बाजरा, सरसों एवं मोटे अनाज उत्पादन में राजस्थान सबसे आगे है क्योंकि मरुस्थलीय मिट्टी का सर्वाधिक क्षेत्रफल राजस्थान में है।
– राजस्थान के गंगानगर जिला जहां से इंदिरा गांधी नहर के माध्यम से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराई गई है वहां पर खाद्यान्नों की खेती भी की जाती है।
– हरित क्रांति के क्षेत्रों में राजस्थान का श्रीगंगानगर जिला भी शामिल था। {गेहूं}
– पंजाब में हरि के नाम के स्थान पर व्यास नदी सतलज से मिलती है इनके मिलन स्थान पर पोंग नामक बांध बनाकर इस बांध से इंदिरा गांधी नहर निकालकर राजस्थान की ओर ले जाया गया है तथा इस नहर से राजस्थान के 7 जिलों की सिंचाई की जाती है।

पर्वतीय मिट्टी

– पर्वतीय मिट्टी भारत में हिमालय के साथ-साथ पाई जाती है इस कारण जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती है।
– चुकी हिमालय पर वनस्पतियों एवं जीवों की प्रचुरता है इसी कारण हिमालय के पर्वतीय मिट्टी में ह्यूमस की प्रचुरता पाई जाती है।
– ह्यूमस की अधिकता के कारण पर्वतीय मिट्टी में अम्लीयता के गुण आ गए हैं जिसके कारण यहां सेब, नासपाती एवं चाय की खेती होती है।
– पर्वतीय मिट्टी एक पूर्ण विकसित मिट्टी नहीं है बल्कि यह एक अविकसित तथा निर्माणधीन मिट्टी है। अर्थात इसका निर्माण अभी भी हो रहा है।

भारत की मिट्टियाँ- भाग 3 (अध्याय -35 भारत का भूगोल )








पीट एवं दलदली मृदा
– केरल एवं तमिलनाडु के तट पर अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में जलजमाव के कारण गीली मिट्टी का निर्माण हुआ है इस गीली मिट्टी को पीट मिट्टी कहते हैं।
– पीट मिट्टी का निर्माण गीली भूमि पर वनस्पतियों के सड़ने से होता है। अतः इसी कारण पीट मिट्टी में अपेक्षाकृत ह्यूमस की मात्रा अधिक पाई जाती है।
– भारत में दलदली मिट्टी सुंदरवन के तट तथा उड़ीसा के तट पर पाया जाता है। भारत में दलदली मिट्टी ऐसे तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है जहां समुद्र का ज्वारीय जल प्रवेश करता है।
– भारत में सर्वाधिक ह्यूमस दलदली मिट्टी में पाई जाती है।

लवणीय एवं क्षारीय मृदा

– लवणीय एवं क्षारीय मृदा का निर्माण अधिक सिंचाई वाले क्षेत्रों में हुआ है।
– हरित क्रांति के अंतर्गत भारत के पंजाब, हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, और उत्तरी राजस्थान में नहरी सिंचाई के कारण लवणीय एवं क्षारीय मृदा का निर्माण हुआ है।
– लवणीय एवं क्षारीय मृदा को रेह एवं कल्लर के नाम से जाना जाता है।
– ऐसे मृदा में लवण प्रतिरोधी फसल ही उगाए जा सकते हैं। जैसे – बरसीम, धान, गन्ना

– अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व भर की मिट्टियों को 11 भागों में बांटा गया है।

इन 11 वर्गों में भारत की भी कुछ मिट्टियां शामिल है।
1- इनसेफ्टीसॉल – इसके अंतर्गत गंगा एवं ब्रह्मपुत्र घाटी की मिट्टी को शामिल किया जाता है।
– जलोढ़ मिट्टी
2- वर्टिसॉल –  इसके अंतर्गत दक्कन पठार की काली मिट्टी को शामिल किया जाता है।
3- एरिडिसॉल – इसके अंतर्गत राजस्थान के मरुस्थलीय मिट्टी को शामिल किया जाता है।
4- हिस्टोसॉल – इसके अंतर्गत पीट एवं दलदली मिट्टी को शामिल किया जाता है (केरला एवं तमिलनाडु की)
5 – ऑक्सीसॉल – ऑक्सीसॉल के अंतर्गत केरल की लैटेराइट मिट्टी को रखा गया है।

– केंद्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड का गठन 1953 में हुआ था।

– क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक बंजर भूमि राजस्थान में पाई जाती है।
– सर्वाधिक सूखाग्रस्त क्षेत्र राजस्थान राज्य में है।
– प्रतिशत की दृष्टि से कुल क्षेत्रफल का सर्वाधिक बंजर भूमि जम्मू-कश्मीर में है।
– सर्वाधिक लवणीय मृदा क्षेत्र गुजरात राज्य में है क्योंकि कच्छ जिला गुजरात का दलदली क्षेत्र है।
– सर्वाधिक क्षारीय मृदा क्षेत्र उत्तर प्रदेश में है क्योंकि उत्तर प्रदेश का एक बड़ा भाग नहरी सिंचाई के अधीन है।

वृहद्-और-ट्रांस(TRANS) (अध्याय -6 भारत का भूगोल )







हिमालय के अंतर्गत 4 समानांतर पर्वत श्रेणियों को शामिल किया जाता है।

1- ट्रांस हिमालय या पार हिमालय
2- वृहद हिमालय या महान हिमालय या सर्वोच्च हिमालय या हिमाद्रि या आंतरिक हिमालय।
3- मध्य हिमालय या लघु हिमालय
4- शिवालिक हिमालय

ट्रांस हिमालय या पार हिमालय

– ट्रांस हिमालय के अंतर्गत हिमालय के उत्तर में जम्मू कश्मीर राज्य में तीन पर्वत श्रेणियों को शामिल किया जाता है।
काराकोरम, लद्दाख, जास्कर
– ट्रांस हिमालय का निर्माण हिमालय से भी पहले हो चुका था तथा यह यूरेशिया (अंगारालैंड) का भाग है।
– ट्रांस हिमालय अधिक ऊंचाई होने के कारण वर्ष भर हिमाच्छादित रहता है जिसके कारण इस पर वनस्पति नहीं पाई जाती है।
– काराकोरम ट्रांस हिमालय की तथा भारत की सबसे उत्तरी पर्वत श्रेणी है।
– भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटी गॉडविन ऑस्टिन k 2 काराकोरम पर्वत श्रेणी पर अवस्थित है।

 काराकोरम श्रेणी पर चार ग्लेशियर हिमनद हैं।

1-सियाचिन,
2- हिस्पर
3- बिआफो
4- बालटोरा।

काराकोरम श्रेणी के दक्षिण में लद्दाख श्रेणी है तथा लद्दाख श्रेणी के दक्षिण में जास्कर श्रेणी हैं।

– लद्दाख श्रेणी पर राकापोशी चोटी है जो दुनिया की सबसे तीव्र ढाल वाली टोपी है।
– लद्दाख श्रेणी दो नदियों श्योक नदी (उत्तर की ओर) तथा सिंधु नदी (दक्षिण की ओर) के बीच में है। श्योक सिंधु की सहायक नदी है |
सिंधु नदी लद्दाख एवं जास्कर पर्वत श्रेणी से प्रवाहित होते हुए पाकिस्तान में जाती है।
– लेह सिंधु नदी के किनारे अवस्थित है।

वृहद हिमालय

– हिमालय की सबसे ऊंची पर्वत श्रेणी को वृहद हिमालय के नाम से जाना जाता है।
– ट्रांस हिमालय बृहत हिमालय से शचर जोन द्वारा अलग होता है।
– वृहद हिमालय हिमालय की सबसे ऊपरी तथा सबसे ऊंची पर्वत श्रेणी है।
हिमालय का विस्तार पश्चिम से नंगा पर्वत से लेकर पूर्व में नामचाबरवा पर्वत तक है नामचाबरवा पर्वत चोटी तिब्बत में है।
– विश्व की 10 सबसे ऊंची पर्वत चोटी वृहद हिमालय पर है।
1- एवरेस्ट – नेपाल – 8848 मीटर – विश्व की सबसे ऊंची चोटी
2- कंचनजंघा – सिक्किम – हिमालय पर स्थित भारत की सबसे ऊंची चोटी
3 मकालू – नेपाल
4- धौलागिरी – नेपाल
हिमालय की सबसे पूर्वी पर्वत चोटी – नामचाबरवा (तिब्बत)
हिमालय की सबसे पश्चिमी पर्वत चोटी – नंगा पर्वत (j&k)
– उत्तराखंड की पर्वत चोटी – नंदा देवी, त्रिशूल, बंदरपूंछ, कामेट
– एवरेस्ट को नेपाल में तिब्बती भाषा में चोमोलूंगमां कहते हैं। तथा इसका अर्थ पर्वतों की रानी होता है।

भारत के सभी बांध (अध्याय -38 भारत का भूगोल )








भारत के सभी बांध (अध्याय -38 भारत का भूगोल )

नदी परियोजना             नदी               राज्य
बगलीहार परियोजना     चेनाब             j&k
दुलहस्ती परियोजनाएं    चेनाब             j&k
सलाल परियोजना         चेनाब             j&k
किशनगंगा परियोजना    झेलम             j&k
तुलबुल परियोजना        झेलम             j&k
उड़ी परियोजना            झेलम             j&k
निम्बोबाजको परियोजना  सुरू नदी        j&k
पाकिस्तान भारत के जम्मू कश्मीर में निर्मित सभी नदी परियोजनाओं का विरोध करता है |
पाकिस्तान के अनुसार 1960 सिंधु जल समझौता का उल्लंघन है |
इस समझौते के अनुसार सिंधु नदी तंत्र की पश्चिम के तीन नदियों सिंधु चिनाब झेलम के 80% जल का उपयोग पाकिस्तान करेगा और पूर्व की 3 नदियां रावी व्यास सतलज के 80% जल का उपयोग भारत करेगा परंतु भारत ने झेलम और चिनाब पर बांध बनाकर पाकिस्तान को संकट में डाल दिया गया।

भाखड़ा परियोजना – सतलज नदी – हिमाचल प्रदेश

– नाथपाझाकरी परियोजना – सतलज नदी – हिमाचल प्रदेश
– पोंग परियोजना – ब्यास नदी – हिमाचल प्रदेश
– चमेरा परियोजना – रावी नदी – हिमाचल प्रदेश
– पार्वती परियोजना – पार्वती नदी – हिमाचल प्रदेश

उत्तराखंड

– टिहरी परियोजना भागीरथी एवं भिलंगना के संगम पर
– टनकपुर परियोजना शारदा या काली नदी

पंजाब

– नांगल परियोजना – सतलज नदी
– हरिके परियोजना – सतलुज और व्यास के संगम पर
– थनी परियोजना    – रावी नदी

राजस्थान

– जवाहर सागर परियोजना  – चंबल नदी
– राणा प्रताप सागर परियोजना – चंबल नदी

उत्तर प्रदेश

– माताटीला परियोजना – बेतवा नदी झांसी
– लक्ष्मी बाई परियोजना – बेतवा नदी झांसी
– रिहंद परियोजना  – रिहंद नदी सोनभद्र
Or ओबरा परियोजना

नेपाल

– हनुमान नगर बैराज – कोसी नदी
– पंचेश्वर परियोजना – नेपाल भारत के सहयोग से तैयार की गई

सिक्किम

– रानगिट परियोजना – तीस्ता नदी

भूटान

– चुकखा परियोजना – वांगचु नदी
– टाला परियोजना – वांगचु नदी
– संकोस परियोजना – वांगचु नदी
भारत के सहयोग से तैयार की गई है

बिहार

– गंडक परियोजना – गंडक नदी
– कोसी परियोजना – कोसी नदी

महाराष्ट्र

– कोयना बाँध    –  कोयना नदी
– पूर्णा बाँध      –  पूर्णा नदी
– भीमा बाँध     – भीमा नदी
– जायकवाड़ी बाँध –  गोदावरी नदी
– छोंग बाँध परियोजना –  कृष्णा नदी

कर्नाटक

– जोंग या महात्मा गांधी परि० – शरावती नदी
– लिंगन मक्की परि० – शरावती नदी
– शिवसमुद्रम परि० – कावेरी नदी
– घाटप्रभा परि० – घाटप्रभा नदी
– मालप्रभा परि० – मालप्रभा नदी
– भद्रा परि० –  भद्रा नदी
– कालिन्दी परि० – कालिन्दी नदी

आंध्र प्रदेश

– नागर्जुन सागर परि० – कृष्णा नदी
– श्री शैलम परि० – कृष्णा नदी
– अलमट्टी परि० – कृष्णा नदी
– पोचम्पाद परि० – गोदावरी नदी
– निजाम सागर परि० – निजाम सागर जलाशय ( नहर पर)

असम

– ओमियामा परियोजना

गुजरात

– उकाई बाँध – तापी नदी
– काकरापार बाँध – तापी नदी
– साबरमती बाँध – साबरमती नदी
– माही परियोजना – माही नदी
– सरदार सरोवर परियोजना – नर्मदा पर निर्माणधीन
इस परियोजना की संकल्पना सरदार वल्लभ भाई पटेल ने प्रस्तुत की थी तथा शिलान्यास 1961 में प० जवाहर लाल नेहरू ने किया तथा ।
लाभान्वित राज्य – मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान

मध्यप्रदेश

– तावा परियोजना – तावा नदी
– बाणसागर परियोजना – सोन नदी
– गांधी सागर परियोजना – चम्बल नदी
– ओकरेश्वर परियोजना – नर्मदा नदी
– इंदिरा परियोजना – नर्मदा नदी

तमिलनाडु

– परामबिकुलम अरियार – परामबिकुलम नदी
– मैंटूर बाँध परि० – कावेरी नदी
– पायकारा परि० – पायकारा नदी
– पापनाशम परि० – पापनाशम नदी

केरला

– पेरियार या इडुक्की परि० – पेरियार नदी
– शबरीगिरी परि० – पम्बा नदी

उड़ीसा

– हीराकुंड परि० – महानदी
– मद्दकुण्ड परि० – मद्दकुंड नदी ( उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के सिमा पर )

झारखंड

– दामोदर घाटी परि०
– झारखंड एवं प० बंगाल की संयुक्त परियोजना हैं।
– दामोदर घाटी परि० के अंर्तगत प्रमुख रूप से तीन बाँध बनाए गए हैं।
मैथान बाँध  –  झारखंड
तिलैया बाँध  –  झारखंड
पंचेथील बाँध –  झारखण्ड
कोयलकारो परि० – कोयलकारो नदी

प० बंगाल

– फरक्का परि० – हुगली नदी
– मयूराक्षी परि० – मयूराक्षी नदी या कनाडा बाँध परि०
– भारत का सबसे ऊंचा बाँध – टीहरि बाँध ( 261m)
– भारत का सबसे ऊंचा गुरुत्वीय बाँध – भाखड़ा बाँध ( 255m)

भारत का बांध भाग -2 (अध्याय -37 भारत का भूगोल )




इंदिरा गांधी नहर परियोजना

– इंदिरा गांधी नहर विश्व की विशालतम सिंचाई परियोजना है अर्थात यह विश्व की सबसे बड़ी नहर प्रणाली है।
– इसका उद्देश्य राजस्थान के पश्चिमी जिलों अर्थात शुष्क जिलों को जल उपलब्ध कराना है।
– सतलुज और व्यास नदी पंजाब में कपूरथला के निकट जहां मिलते हैं वहां हरिके बैराज नामक बांध बनाकर पानी को एकत्रित कर दिया गया है।
हरिके बैराज से राजस्थान फीडर नामक नहर निकाली गई है जो इंदिरा गांधी नहर को जल की आपूर्ति कराती है।
– इंदिरा गांधी नहर राजस्थान के 4 जिलों को मुख्य रूप से जल की आपूर्ति करती है- गंगानगर, बीकानेर जैसलमेर बाड़मेर इंदिरा गांधी नहर के कारण ही राजस्थान के पश्चिमी भागों में

टिहरी बांध परियोजना

– भागीरथी एवं भिलंगना नदी के संगम स्थान पर उत्तराखंड राज्य में टिहरी बांध परियोजना बनाया जा रहा है।
– टिहरी बांध भूकंप जोन – 5 के अंतर्गत आता है।
– पूरा हिमालय कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भूकंप जोन 5 के अंतर्गत आता है जो कि भूकंप के लिहाज से सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र है। अर्थात यहां पर रिएक्टर स्केल पर 8 या 8 से अधिक तीव्रता के भूकंप आने की संभावना बनी रहती है। अतः यहां आस-पास के क्षेत्रों के लिए खतरनाक है।
– पहले भारत में 5 भूकंप जोन थे – भूकंप जोन 1, भूकंप जोन 2, भूकंप जोन 3, भूकंप जोन 4, भूकंप जोन 5
परंतु अब भूकंप जोन 1 को समाप्त कर दिया गया है।
– सर्वाधिक भूकंप की तीव्रता भूकंप जोन 5 में मापी जाती है तथा उसके बाद क्रमशः 4,3,2 में मापी जाती है।
– भूकंप जोन 5 – कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक हिमालय का भाग पूर्वोत्तर भारत नेपाल और बिहार का सीमावर्ती क्षेत्र गुजरात का कच्छ वाला क्षेत्र- 8 तीव्रता

नर्मदा घाटी परियोजना

– नर्मदा भारत की पांचवी सबसे लंबी नदी है।
– भारत की लंबी नदियों का क्रम – गंगा, गोदावरी, कृष्णा, यमुना, नर्मदा
– गोदावरी और कृष्णा के बाद नर्मदा दक्षिण भारत की तीसरी सबसे लंबी नदी है।
– अरब सागर में जल गिराने वाली भारत की सबसे लंबी नदी नर्मदा है।

– नर्मदा का जल ग्रहण क्षेत्र 3 राज्यों में विस्तृत है –

मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात
86%          2%        12%
– नर्मदा नदी के जल का उपयोग करने के लिए नर्मदा घाटी परियोजना तैयार की गई जिसके तहत नर्मदा नदी पर बहुत से बांधों का निर्माण किया जा रहा है जिनमें से चार प्रमुख हैं –
1- नर्मदा सागर परियोजना – मध्य प्रदेश
2- ओंकारेश्वर परियोजना – मध्यप्रदेश
3- महेश्वर परियोजना –  मध्य प्रदेश
4- सरदार सरोवर परियोजना – गुजरात

सरदार सरोवर परियोजना

– सरदार सरोवर परियोजना 4 राज्यों की संयुक्त परियोजना है –
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान
– सरदार सरोवर परियोजना का सर्वाधिक लाभ गुजरात को मिलेगा क्योंकि इस बांध के बन जाने से गुजरात के पश्चिमी शुष्क इलाकों में जल की आपूर्ति की जा सकेगी।
– सरदार सरोवर परियोजना से सर्वाधिक नुकसान मध्यप्रदेश को होगा क्योंकि बांध के कारण जलस्तर बढ़ने से मध्यप्रदेश का बहुत बड़ा वनाच्छादित क्षेत्र जलमग्न हो जाएगा तथा बहुत सारे जीव जंतु विलुप्त हो जाएंगे जिससे इस क्षेत्र में पारिस्थितिकीय संकट उत्पन्न हो जाएगा।
– इस क्षेत्र में रहने वाले जनजाति इससे प्रभावित होंगे तथा उनके पुनर्वास की संकट उत्पन्न होगी।
– सरदार सरोवर परियोजना या बांध की ऊंचाई बढ़ाने के कारण 90 के दशक में नर्मदा बचाओ आंदोलन शुरू हो गया। इस आंदोलन के दो प्रमुख नेता थे – मेधा पाटकर और बाबा आमटे

केन – बेतवा लिंक परियोजना

– केन और बेतवा दोनों यमुना की सहायक नदियां हैं।
– दोनों नदियां मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में प्रवाहित होती है।
– 2005 में केन बेतवा लिंक परियोजना की शुरुआत की गई थी तथा हाल ही में यह परियोजना तैयार हो गई है जिसके तहत केन एवं बेतवा नदी को नहर के माध्यम से जोड़ भी दिया गया है ताकि बुंदेलखंड की सूखे की समस्या से निजात पाया जा सके।
– केन बेतवा लिंक परियोजना को नदी जोड़ो परियोजना का ही प्रारंभिक चरण माना जा सकता है।
– नदी जोड़ो परियोजना को अमृत क्रांति का नाम दिया गया है।

नदी जोड़ो परियोजना

– नदी जोड़ो परियोजना एक महत्वाकांक्षी परियोजना है जिसे अभी तक भारत में अत्यधिक लागत के कारण शुरु नहीं किया गया है।
इस योजना के तहत उत्तर भारत की नदियों को दक्षिण भारत की नदियों से जोड़ दिया जाएगा तथा पूर्वोत्तर भारत की नदियों पश्चिम की नदियों से जोड़ दिया जाएगा जिससे पूर्वोत्तर भारत को बाहर तथा पश्चिमी भारत को सुखा जैसी आपदा से निजात मिलेगा तथा उत्तर भारत की नदियों को दक्षिण भारत की नदियों से जोड़ देने पर दक्षिण भारत की नदियों में वर्ष भर जल की आपूर्ति होती रहेगी।
नदी जोड़ो परियोजना को अमृत क्रांति का नाम दिया गया है।

हिमालयी नदियाँ (अध्याय -14 भारत का भूगोल )









सुविधा के लिए भारत की नदियों को दो भागों में बांटा गया है।
1- हिमालय की नदियां`
2- प्रायद्वीपीय भारत की नदियां

– सुविधा की दृष्टि से हिमालय की नदियों को भी तीन भागों में बांटते हैं।

1- सिंधु नदी तंत्र
2- गंगा नदी तंत्र
3- ब्रम्हपुत्र नदी तंत्र
– हिमालय की तीन नदियां सिंधु, सतलज, एवं ब्रह्मपुत्र हिमालय की उत्पत्ति से पहले भी यहां बहती थी।
तीनों नदियां मानसरोवर झील से निकलती हैं। यह तीनों नदियां हिमालय के उत्थान से पहले तिब्बत के मानसरोवर झील से निकलती थी तथा टेथिस सागर में गिरती थी।
– आज जहां पर हिमालय पर्वत है वहां पर पहले टेथिस सागर का विस्तार था जिसे टेथिस भूसन्नति भी कहा जाता है। जब टेथिस भूसन्नति से हिमालय का उत्थान प्रारंभ हुआ तो यह तीनों नदियों ने अपना रास्ता एवं दिशा परिवर्तन नहीं किया बल्कि इन तीनों नदियों ने हिमालय के उत्थान के साथ साथ हिमालय को काटती रही अर्थात अपनी घाटी को गहरा करती रही जिसके परिणाम स्वरुप इन तीनों नदियों ने वृहद हिमालय में अपनी अपनी जगह पर गहरे एवं संकरी घाटियों का निर्माण कर दिया जिसे गार्ज या आई(I) आकार की घाटी भी कहते हैं। या कैनियन भी कहते हैं।
कैनियन गार्ज की अपेक्षा अधिक गहरा होता है।
जैसे-
(1) सिंधु गार्ज – सिंधु नदी पर जम्मू-कश्मीर में गिलगिट के समीप
2- शिपकिला गार्ज – हिमाचल प्रदेश में सतलज नदी पर
3- दिहांग गार्ज – अरुणाचल प्रदेश में ब्रम्हपुत्र नदी पर
-हिमालय की पूर्ववर्ती नदी एवं ब्रम्हपुत्र अंतर्राष्ट्रीय नदी हैं अर्थात इनमें से प्रत्येक नदी तीन देशों से होकर गुजरती है
1- सिंधु नदी – चीन, भारत, पाकिस्तान
2- सतलज नदी – चीन, भारत, पाकिस्तान
3- ब्रह्मपुत्र नदी – चीन, भारत, बांग्लादेश

सिंधु नदी तंत्र

– सिंधु नदी तंत्र की मुख्य नदी सिंधु है।
– सिंधु नदी के बाएं तट पर आकर मिलने वाली पांच प्रमुख सहायक नदियों का क्रम इस प्रकार है – पश्चिम से पूर्व की ओर सिंधु, झेलम, चिनाब, रावि, व्यास, सतलज
– सिंधु तंत्र में दो नदियां तिब्बत के मानसरोवर झील से निकलती हैं।
सिंधु नदी एवं सतलज नदी
– सिंधु नदी तंत्र की एकमात्र नदी जम्मू कश्मीर से निकलती है – झेलम नदी
– सिंधु नदी तंत्र की शेष तीन नदियां हिमाचल प्रदेश से निकलती हैं।
चिनाब, रावी, व्यास

– सिंधु नदी की पांच प्रमुख सहायक नदियां जो पंजाब में बहती है, पंचनद कहलाती हैं।

ये पांचो प्रमुख सहायक नदियां अपना जल सम्मिलित रूप से पाकिस्तान के मिठान कोट में सिंधु नदी के बाएं तट पर अपना जल गिराती हैं।

सिंधु नदी तंत्र के नदियों का उद्गम स्थल

1 – सिंधु नदी – तिब्बत के मानसरोवर झील के समीप चेमायुंगड़ग ग्लेशियर से
2- सतलज नदी – तिब्बत के मानसरोवर झील के समीप राकसताल झील से
3- झेलम नदी- जम्मू कश्मीर में बेरीनाग के समीप शेषनाग झील से
4- चेनाब झील- हिमाचल प्रदेश में बरालाचाला दर्रे के समीप से
5- रावी एवं व्यास- हिमाचल प्रदेश में रोहतांग दर्रे के समीप से इनमें से व्यास नदी सतलज की सहायक नदी है जो पंजाब में सतलज नदी से मिल जाती है व्यास नदी सिंधु नदी तंत्र की एकमात्र सहायक नदी है जो पाकिस्तान में नहीं जाती है। व्यास नदी हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रा के समीप से निकलकर पंजाब में कपूरथला के निकट हरीके नामक स्थान पर सतलज नदी में मिल जाती है।

सिंधु नदी

– सिंधु नदी तंत्र की प्रमुख नदी हैं।
– सिंधु नदी ब्रह्मपुत्र नदी के बाद भारत में बहने वाली दूसरी सबसे लंबी नदी है।

Note – भारत की 6 सबसे लंबी नदियों का क्रम इस प्रकार है।

1- बह्मपुत्र – 2900 km
2- सिंधु – 2880 km
3- गंगा – 2525 km
4- सतलज- 1500 km
5- गोदावरी – 1465 दक्षिण भारत की सबसे लंबी नदी
6- यमुना – 1385 km
– सिंधु नदी तिब्बत के मानसरोवर झील के समीप से चेमायुंगड़ग ग्लेशियर से निकलकर जम्मू कश्मीर राज्य में प्रवेश करती है।
सिंधु नदी जम्मू कश्मीर में लद्दाख एवं जास्कर श्रेणीयो के मध्य प्रवाहित होते हुए उत्तर पश्चिम की ओर बहती है तथा गिलगिट के समीप एक बहुत गहरी गार्ज का निर्माण करती है, जिसे सिंधु गार्ज कहा जाता है तथा गिलगिट के समीप ही सिंधु नदी दक्षिण की ओर मुड़कर पाकिस्तान में प्रवेश करती है।
– लेह लद्दाख एवं जास्कर श्रेणी के बीच सिंधु नदी के किनारे बसा हुआ है।
झेलम नदी
झेलम नदी जम्मू कश्मीर में बेरीनाग के समीप शेषनाग झील से निकलती है तथा श्रीनगर होते हुए वुलर झील में मिल जाती है। तथा कुछ दूर तक भारत पाक सीमा के साथ-साथ प्रवाहित होते हुए पाकिस्तान में चली जाती है।
– झेलम नदी कश्मीर घाटी से होकर बहती है और कश्मीर घाटी एक समतल मैदान है। तथा इस समतल मैदान का ढाल बहुत कम हो जाता है ढाल कम होने के चलते झेलम नदी विसर्पण करने लगती है।
झेलम हिमालय की एक मात्र नदी हैं, जो विसपर्ण करती हैं।
– झेलम नदी जम्मू कश्मीर में अनंतनाग से बारामुला तक नौकागम्य है क्योंकि समतल भूमि के कारण।

चिनाब नदी

– चिनाब नदी हिमाचल प्रदेश के बरालाचाला दर्रा के समीप से निकलती है।
रावी और व्यास नदी
– रावी और व्यास नदी हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रा के समीप से निकलती है।
– व्यास नदी सिंधु नदी तंत्र की एकमात्र नदी है जो पाकिस्तान में नहीं जाती। व्यास नदी रोहतांग दर्रा के समीप से निकलकर पंजाब में कपूरथला के निकट हरीके नामक स्थान पर सतलज नदी में मिल जाती है।
सतलज नदी
– सतलज नदी तिब्बत के मानसरोवर झील के समीप राकसताल से निकलती है तथा हिमाचल प्रदेश में शिपकीला दर्रा के समीप प्रवेश करती है तथा शिपकिला गार्ज का निर्माण करती है।
– सतलज नदी भारत में दो राज्य हिमाचल प्रदेश एवं पंजाब होते हुए पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है।
– सतलज नदी सिंधु नदी तंत्र के शेष चार नदियों का जल लेकर सम्मिलित रूप से पाकिस्तान के मिठानकोट में सिंधु नदी के बाएं तरफ मिल जाती है।
– पंचनद के अलावा कुछ अन्य छोटी नदियां भी सिंधु नदी के बाएं तट पर जाकर मिलती हैं।
जास्कर नदी, शयांग नदी, शीगार नदी, गिलगिट नदी
कुछ अन्य छोटी नदियां सिंधु नदी में दाएं तरफ से आकर मिलती हैं।
श्योक नदी ,काबुल नदी, कुर्रम नदी, गोमल नदी

सिंधु नदी जल समझौता

– सिंधु नदी जल समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 1964 में हुआ था इस समझोते में यह तय हुआ था कि सिंधु नदी तंत्र की 6 प्रमुख नदियों में से पश्चिम की तीन नदियों के 20% जल का उपयोग भारत करेगा 80% जल का उपयोग पाकिस्तान करेगा। साथ ही सिंधु नदी तंत्र की पूर्वी तीन नदियों अर्थात रावी, व्यास, सतलज 80% जल का उपयोग भारत तथा 20% जल का उपयोग पाकिस्तान करेगा

भारत के सभी बांध (अध्याय -38 भारत का भूगोल )


नदी परियोजना             नदी               राज्य
बगलीहार परियोजना     चेनाब             j&k
दुलहस्ती परियोजनाएं    चेनाब             j&k
सलाल परियोजना         चेनाब             j&k
किशनगंगा परियोजना    झेलम             j&k
तुलबुल परियोजना        झेलम             j&k
उड़ी परियोजना            झेलम             j&k
निम्बोबाजको परियोजना  सुरू नदी        j&k
पाकिस्तान भारत के जम्मू कश्मीर में निर्मित सभी नदी परियोजनाओं का विरोध करता है |
पाकिस्तान के अनुसार 1960 सिंधु जल समझौता का उल्लंघन है |
इस समझौते के अनुसार सिंधु नदी तंत्र की पश्चिम के तीन नदियों सिंधु चिनाब झेलम के 80% जल का उपयोग पाकिस्तान करेगा और पूर्व की 3 नदियां रावी व्यास सतलज के 80% जल का उपयोग भारत करेगा परंतु भारत ने झेलम और चिनाब पर बांध बनाकर पाकिस्तान को संकट में डाल दिया गया।

भाखड़ा परियोजना – सतलज नदी – हिमाचल प्रदेश

– नाथपाझाकरी परियोजना – सतलज नदी – हिमाचल प्रदेश
– पोंग परियोजना – ब्यास नदी – हिमाचल प्रदेश
– चमेरा परियोजना – रावी नदी – हिमाचल प्रदेश
– पार्वती परियोजना – पार्वती नदी – हिमाचल प्रदेश

उत्तराखंड

– टिहरी परियोजना भागीरथी एवं भिलंगना के संगम पर
– टनकपुर परियोजना शारदा या काली नदी

पंजाब

– नांगल परियोजना – सतलज नदी
– हरिके परियोजना – सतलुज और व्यास के संगम पर
– थनी परियोजना    – रावी नदी

राजस्थान

– जवाहर सागर परियोजना  – चंबल नदी
– राणा प्रताप सागर परियोजना – चंबल नदी

उत्तर प्रदेश

– माताटीला परियोजना – बेतवा नदी झांसी
– लक्ष्मी बाई परियोजना – बेतवा नदी झांसी
– रिहंद परियोजना  – रिहंद नदी सोनभद्र
Or ओबरा परियोजना

नेपाल

– हनुमान नगर बैराज – कोसी नदी
– पंचेश्वर परियोजना – नेपाल भारत के सहयोग से तैयार की गई

सिक्किम

– रानगिट परियोजना – तीस्ता नदी

भूटान

– चुकखा परियोजना – वांगचु नदी
– टाला परियोजना – वांगचु नदी
– संकोस परियोजना – वांगचु नदी
भारत के सहयोग से तैयार की गई है

बिहार

– गंडक परियोजना – गंडक नदी
– कोसी परियोजना – कोसी नदी

महाराष्ट्र

– कोयना बाँध    –  कोयना नदी
– पूर्णा बाँध      –  पूर्णा नदी
– भीमा बाँध     – भीमा नदी
– जायकवाड़ी बाँध –  गोदावरी नदी
– छोंग बाँध परियोजना –  कृष्णा नदी

कर्नाटक

– जोंग या महात्मा गांधी परि० – शरावती नदी
– लिंगन मक्की परि० – शरावती नदी
– शिवसमुद्रम परि० – कावेरी नदी
– घाटप्रभा परि० – घाटप्रभा नदी
– मालप्रभा परि० – मालप्रभा नदी
– भद्रा परि० –  भद्रा नदी
– कालिन्दी परि० – कालिन्दी नदी

आंध्र प्रदेश

– नागर्जुन सागर परि० – कृष्णा नदी
– श्री शैलम परि० – कृष्णा नदी
– अलमट्टी परि० – कृष्णा नदी
– पोचम्पाद परि० – गोदावरी नदी
– निजाम सागर परि० – निजाम सागर जलाशय ( नहर पर)

असम

– ओमियामा परियोजना

गुजरात

– उकाई बाँध – तापी नदी
– काकरापार बाँध – तापी नदी
– साबरमती बाँध – साबरमती नदी
– माही परियोजना – माही नदी
– सरदार सरोवर परियोजना – नर्मदा पर निर्माणधीन
इस परियोजना की संकल्पना सरदार वल्लभ भाई पटेल ने प्रस्तुत की थी तथा शिलान्यास 1961 में प० जवाहर लाल नेहरू ने किया तथा ।
लाभान्वित राज्य – मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान

मध्यप्रदेश

– तावा परियोजना – तावा नदी
– बाणसागर परियोजना – सोन नदी
– गांधी सागर परियोजना – चम्बल नदी
– ओकरेश्वर परियोजना – नर्मदा नदी
– इंदिरा परियोजना – नर्मदा नदी

तमिलनाडु

– परामबिकुलम अरियार – परामबिकुलम नदी
– मैंटूर बाँध परि० – कावेरी नदी
– पायकारा परि० – पायकारा नदी
– पापनाशम परि० – पापनाशम नदी

केरला

– पेरियार या इडुक्की परि० – पेरियार नदी
– शबरीगिरी परि० – पम्बा नदी

उड़ीसा

– हीराकुंड परि० – महानदी
– मद्दकुण्ड परि० – मद्दकुंड नदी ( उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के सिमा पर )

झारखंड

– दामोदर घाटी परि०
– झारखंड एवं प० बंगाल की संयुक्त परियोजना हैं।
– दामोदर घाटी परि० के अंर्तगत प्रमुख रूप से तीन बाँध बनाए गए हैं।
मैथान बाँध  –  झारखंड
तिलैया बाँध  –  झारखंड
पंचेथील बाँध –  झारखण्ड
कोयलकारो परि० – कोयलकारो नदी

प० बंगाल

– फरक्का परि० – हुगली नदी
– मयूराक्षी परि० – मयूराक्षी नदी या कनाडा बाँध परि०
– भारत का सबसे ऊंचा बाँध – टीहरि बाँध ( 261m)
– भारत का सबसे ऊंचा गुरुत्वीय बाँध – भाखड़ा बाँध ( 255m)